TULASIDAS JIVAN PARICHAY तुलसीदास का जीवन परिचय एवं रचनाएं
अयोध्यासिंह उपाध्याय ”हरिऔध” ने तुलसीदास जी के सम्बन्ध में उचित ही लिखा है –
” कविता करके तुलसी न लसे,
कविता लसी पा तुलसी की कला ।
रामाश्रयी शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि एवं सन्त , तुलसीदास जी की जन्मतिथि और जन्मस्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद हैं । सामान्यतः उनका जन्म १५३२ ई ० में हुआ माना जाता है । कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म संवत् 1554 ( 1497 ई० ) में श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन हुआ था ।
जन्म – स्थान
तुलसी के जन्म – स्थान के विषय में भी कई मत प्रचलित हैं। इनमें दो मत प्रमुख हैं
( १ ) उत्तर प्रदेश में बाँदा जिले का राजापुर ग्राम।
( २ ) एटा जिले का सोरों नामक स्थान ।
एक किंवदन्ती के अनुसार जब ये उत्पन्न हुए थे तभी इनके मुख में दाँत थे। इनके बचपन का नाम रामबोला था इनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था । इन्हें बचपन में ही माता – पिता ने त्याग दिया था , अत : ये भीख माँगकर पेट भरते रहे ।
अन्त में बाबा नरहरिदास ने इन्हें अपने पास रख लिया और शिक्षा-दीक्षा दी। रत्नावली नाम की कन्या के साथ इनका विवाह हुआ ।
इन्हें अपनी पत्नी से बहुत प्रेम था एक बार इनकी पत्नी इन्हें बिना बताए अपने मायके चली गई। प्रेम की अधिकता के कारण तुलसी आँधी – तूफान का सामना करते हुए उससे मिलने के लिए आधी रात में ही अपनी ससुराल जा पहुँचे । रत्नावली को यह अच्छा न लगा ।
वह इन्हें धिक्कारते हुए बोली-,
” लाज न लागत आपको , दौरे आयहु साथ|
धिक् – धिक ऐसे प्रेम को , कहा कहीं मैं नाथ ।।
अस्थि – चर्ममय देह मम , तामे ऐसी प्रीति ।
ऐसी जो श्रीराम महँ , होत न तौ भवभीति ।।”
पत्नी की इस फटकार ने तुलसी को सांसारिक मोहमाया और भोगों से विरक्त कर दिया। इनके हृदय में राम – भक्ति जाग्रत हो उठी। घर को त्यागकर कुछ दिन ये काशी में रहे, इसके बाद अयोध्या चले गए। बहुत दिनों तक ये चित्रकूट में भी रहे ।
यहाँ पर उनकी भेंट अनेक सन्तों से हुई । संवत् 1631( 1574 ई ० ) में अयोध्या जाकर इन्होंने ‘ श्रीरामचरितमानस ‘ की रचना की । यह रचना दो वर्ष सात मास में पूर्ण हुई । इसके बाद इनका अधिकांश समय काशी में ही व्यतीत हुआ तथा संवत् 1660 ( 1623 ई . ) में इनकी मृत्यु हो गई । इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में यह दोहा प्रसिद्ध है –
“संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर ।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर ॥”
तुलसीदास का जीवन परिचय एवं कृतियाँ –
कविकुलगुरु तुलसीदास की 12 रचनाओं का उल्लेख मिलता है-
- रामलला नहछू – गोस्वामी जी ने लोकगीत की ‘ सोहर ‘ शैली में इस नहछू – ग्रन्थ की रचना थी । यह इनकी प्रारम्भिक रचना है ।
- वैराग्य – संदीपनी इसके तीन भाग हैं । पहले भाग में ६ छन्दों में ‘ मंगलाचरण ‘ है । दूसरा ‘ सन्त – महिमा – वर्णन ‘ और तीसरा भाग ‘ शान्ति – भाव – वर्णन ‘ का है ।
- रामाज्ञा – प्रश्न – इसमें शुभ – अशुभ शकुनों का वर्णन है । यह ग्रन्थ सात सर्गों । इसमें रामकथा का वर्णन किया गया है ।
- जानकी – मंगल – इसमें कवि ने श्रीराम और जानकी के मंगलमय विवाह – उत्सव का मधुर शब्दों में वर्णन किया है ।
- श्रीरामचरितमानस– इस विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ में कवि ने , मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र का व्यापक वर्णन किया है ।
अन्य रचनाएं
- पार्वती – मंगल- यह मंगल – काव्य है । गेय पद होने के कारण इसमें संगीतात्मकता का गुण विद्यमान है । इस रचना का उद्देश्य ‘ शिव – पार्वती – विवाह ‘ का वर्णन करना है ।
- गीतावली – इसमें संकलित २३० पदों में राम के चरित्र का वर्णन है । कथानक के आधार पर इन पदों को सात काण्डों में विभाजित किया गया है
- विनय – पत्रिका – विनय – पत्रिका ‘ का विषय भगवान राम को कलियुग के विरुद्ध प्रार्थना पत्र देना है । इसमें तुलसी भक्त और दार्शनिक कवि के रूप में दिखाई दिए हैं ।
- श्रीकृष्णगीतावली – इसके अन्तर्गत केवल ६१ पदों में कवि ने पूरी श्रीकृष्ण – कथा मनोहारी ढंग से प्रस्तुत की है
- बरवै – रामायण – यह गोस्वामी जी की स्फुट रचना है । इसमें श्रीराम – कथा संक्षेप में वर्णित है ।
- दोहावली – इस संग्रह – ग्रन्थ में कवि की सूक्ति – शैली के दर्शन होते हैं ।
- कवितावली – इस कृति में कवित्त और सवैया शैली में रामकथा का वर्णन किया गया है ।
तुलसी की इन रचनाओं में भगवान राम के चरित्र को व्यापकता के साथ चित्रित किया गया है ।
इसमें सन्देह नहीं कि भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही दृष्टियों से तुलसी का काव्य अद्वितीय है ।
निश्चय ही तुलसी हिन्दी – साहित्य के अमर कवि हैं ।
शैली – तुलसीदास जी ने तत्कालीन सभी काव्य – शैलियों का प्रयोग अपने काव्य में किया । इन्होंने ‘श्रीरामचरितमानस’ में प्रबन्ध शैली, ‘विनयपत्रिका’ में मुक्तक शैली और ‘दोहावली’ में साखी शैली का प्रयोग किया । इनके अतिरिक्त और भी कई शैलियों का प्रयोग इनकी रचनाओं में देखने को मिलता है ।